केरल स्थित कोझिकोड नायाबी समुद्री तट और लजीज खानपान के लिए खास तौर से लुभाता है। यहां के समुद्री तटों को स्ट्रीट फूड हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। वैसे तो यहां घूमने वाली जगहों की भरमार है, लेकिन उनमें से कुछ ऐसी जगहें हैं जिसे यहां आकर जरूर देखें।
लाइट हाउस
कोझिकोड बीच से लगा हुआ सफेद-लाल रंगा का लाइट हाउस कहने को तो एक खामोश संरचना जैसा नजर आता है, लेकिन यह भी अपने में एक गवा है कोझिकोड तट पर बदलते व्यापारिक समीकरणों को। आज यह एक 15 मीटर की संरचना है, जिसका पुननिर्माण साल 1907 में तत्कालीन ब्रिटिश शासन द्वारा करवाया गया था। इससे पहले 33 मीटर ऊंचा लाइट हाउस था, जिसका निर्माण 1847 में किया गया था। शुरुआत में नारियल के तेल का उपयोग करके इस लाइट हाउस से प्रकाश फैलाया जाता था। बाद में काफी शोध के बाद तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी के एक इंजीनियर ने इस लाइट की ऊंचाई कम करने की सलाह दी, जिससे प्रकाश 2008 में इस लाइट हाउस में एलईडी बल्ब लगाए गए थे।
वायनाड व्यू पॉइंट
कोझिकोड शहर के नजदीक एक पर्वत है, जिसे मालाबार की गवी कहा जाता है। यह समुद्र तल से लगभग 567 मीटर की ऊंचाई पर है और कोझिकोड शहर से करीब 55 किमी दूर स्थित है। अगर आप रोमांच के शौकीन हैं तो आपको यह जगह बहुत पसंद आएगी। यह हाल ही के दिनों में डेवलप हुआ टूरिस्ट पॉइंट है। लोकल लोग यहां पिकनिक मनाने जाते हैं। पहाड़ पर स्थित होने के कारण यहां लोग कैम्पिंग करने भी आते हैं। आपको ट्रेकिंग का आनंद लेना है तो यह जगह मुफीद है। मानसून में यह जगह बादलों से घिर जाता है। जहां तक नजर जाती है आसपास नारियल के पेड किसी कालीन से बिछे दिखाई देते हैं। यहां से कक्कायम बांध का नजारा बहुत ही खूबसूरत दिखाई देता है।
वेपोर बीच
जैसे-जैसे हम दक्षिण केरल से उत्तर की ओर बढ़ते हैं, हमें बैक वाटर्स के जगह पर सुंदर बीच नजर आने लगते हैं। कोझिकोड बीच से मात्र 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है प्राचीन नगर वेयपोर। अरब सागर से लगा हुआ यह नगर एक सुंदर बीच के लिए जाना जाता है। सुनहरी रेत और झिलमिलाता समुद्र का नीला पानी इस बीच को अनोखा बनाता है। यहां से सूर्यास्त देखना बहुत सुंदर अनुभव होता है।
वेपोर जहाज निर्माण क्षेत्र
कोझिकोड से मात्र 10 किलोमीटर पहले एक तटीय गांव है, जो आज भी पानी के विशाल जहाज बनाने के लिए जाना जाता है। इस जगह का इतिहास पहली शताब्दी के समय का है। यहां विशाल जहाज जिसे मलयालम में उरु कहा जाता है, आज भी महीनों की मेहनत के बाद हाथों से बनाए जाते हैं। यहां पर रहने वाले खलियास लोग उरु बनाने के लिए पारंपरिक कारीगर माने जाते हैं, जिनकी कृतियों को उनके उत्तम और मजबूत कौशल के कराण जहाज निर्माण में बहुत सम्मान दिया जाता रहा है। एक उरु यानि जहाज का निर्माण करने में कम से कम चार साल का समय लगता है और चालीस लोग लगते हैं। इसके लिए वे नीलांबुर वन से लाई गई विशेष टीक वुड का इस्तेमाल करते हैं।