पहाड़ सदा से मुझे आकर्षित करते रहे हैं। दक्षिण भारत में ‘पहाड़ों की रानी’ कहे जाने वाले Kodaikanal जाने का कार्यक्रम बना, तो मन बाग–बाग हो गया। यह नौ सदस्यों की पारिवारिक यात्रा थी। बेहद रोमांचक। चेन्नई से मदुरै और फिर Kodaikanal। तमिलनाडु में एक ओर आस्था का केंद्र मदुरै है, तो दूसरी ओर प्रकृति की स्वाभाविक छटा बिखेरता Kodaikanal। आसपास के समुद्र तट भी खूब लुभाते हैं। मदुरै पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी। हमने रात में ही मीनाक्षी मंदिर का दर्शन करने का निर्णय लिया। यह मंदिर नौ गलियों के बीच है और हर गली में अनेक दुकानें हैं, जो सुंदर मूर्तियां, कलाकृतियां, पूजा के सामान और मिठाइयां बेचते हैं। इस मंदिर के हर ओर भव्य गोपुरम हैं, जिन पर हिंदू देवी-देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियां देखते ही बनती हैं। ऊपर से देखने पर पता चलता है कि यह मंदिर शहर के बीचोबीच है, जहां पहुंचने के चार मार्ग चारों दिशाओं में हैं। मीनाक्षी देवी यानी मछली की आंख जैसी पार्वती देवी की प्रतिमा मुख्य है, पर भगवान शिव की नटराज के रूप में भी मूर्ति है। इस मूर्ति की खासियत यह है कि यहां शिव बाएं पांव पर नहीं, बल्कि दाएं पांव पर नृत्य करते दिखते हैं। रात की रौनक इतनी आकर्षक थी कि लाइन में खड़े रहने पर भी कोई थकावट नहीं महसूस हुई।
दूसरे दिन हमें Kodaikanal के लिए निकलना था। मिनी बस में यात्रा का आनंद ही कुछ और होता है। जहां मर्जी रोक लो। पहाड़ी झरने और नयनाभिराम दृश्यों का आनंद लेते हुए, खाते-पीते हुए चलते रहो। ‘दक्षिण भारत का स्विट्जरलैंड’ कहलाने वाला यह तमिलनाडु का प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। यहां ठंड भी सिर्फ उतनी ही पड़ती है कि एक स्वेटर से काम चल जाए। हालांकि रात में ठंड थोड़ी बढ़ जाती है। पहाड़ की हर सीढ़ी पर बसे होटलों-घरों में जब बत्तियां जलती हैं, तो लगता है जैसे तारे जमीन पर उतर आए हों। बोटिंग क्लब और बॉटेनिकल गार्डेन तो दर्शनीय स्थान हैं ही, पहाड़ों के बीच बनी प्राकृतिक झील, पिल्लर रॉक्स, पेरुमल पीक और हर्बल पीक भी देखने लायक हैं। हर्बल पहाड़ जड़ी-बूटियों के पेड़ के लिए जाने जाते हैं, जिसमें अलग-अलग रंगों की पत्तियां मन को मोह लेती हैं। कुछ ऐसे फूलों की प्रजातियां भी देखने को मिलीं, जो केवल यहां ठंड में ही होती हैं। यहां सिल्वर वैली एक ऐसा प्वाइंट है, जिसमें कटी-खड़ी ढालों के बीच इतनी गहराई है कि जब इसमें बादल फंस जाते हैं, तो जल्दी निकल नहीं पाते और देर तक पूरी घाटी में कुहासा छाया रहता है। पहाड़ों पर बादलों का उतरना और झट बरस कर छूट जाना आम बात है, इसलिए अपने साथ टूरिस्ट छतरी भी रखते हैं।
सभी दर्शनीय स्थानों के पास गर्म भुट्टे और मूंगफली के दानों की खूब बिक्री होती है। वैसे, यहां चॉकलेट खूब बनते हैं, क्योंकि यहां कोकोआ की खेती बहुत होती है। यह लघु उद्योग की तरह घरों में बनाया जाता है। कभी चावल की तीन फसलें एक साल में होती थीं, पर अब पानी की कमी के कारण एक बार ही यह फसल होती है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों के साथ अब इन जगहों में उत्तर भारत के भी खाद्य-पदार्थ मिलने लगे हैं। इन स्थानों में जाने के सभी साधन उपलब्ध हैं। चेन्नई से अनेक ट्रेन मदुरै को जाती हैं। यात्राएं केवल मनोरंजन ही नहीं करतीं, सामूहिकता में जीना भी सिखाती हैं। अलग-अलग एकल परिवार से निकल कर कभी सामूहिक रूप से यात्रा करके देखिए, एक- दूजे के सुख-दुख बांटने का यह अवसर होता है।