खानपान के शौकीनों को Ajmer का Sohan Halwa बहुत पसंद आता है। देशभर से Ajmer आने वाले जायरीन भी दरगाह पर जियारत के बाद अपने रिश्तेदारों और मित्रों के लिए सोहन हलवे का प्रसाद ले जाना नहीं भूलते। यहां का Sohan Halwa एक ऐसी मिठाई है, जिसे एक-दो महीने तक भी रखा जाए तो खराब नहीं होता। बताया जाता है कि सोहन हलवे का चलन बादशाह अकबर के जमाने से चला आ रहा है। कहा जाता है कि जब अकबर कोई लंबा सफर करते थे तो अपने और लश्कर के लिए इसी तरह की खाद्य सामग्री रखा करते थे, जो दो-तीन महीने तक खराब नहीं होती थी और सफर में खाने में काम आ जाया करती थी। इसीलिए जब कोई जायरीन लंबा सफर करके अजमेर आता है तो ख्वाजा साहब के तबर्रुक (आशीर्वाद) के तौर पर अपने वतन इस सोहन हलवे को ले जाता है।
गजक, रेवड़ी व तिलपट्टी:
सर्दी के मौसम में गजक और तिलपट्टी खाने का मजा ही कुछ और है। Ajmer जिले के ब्यावर शहर में बनने वाली गजक, रेवड़ी व तिलपट्टी काफी मशहूर है। तिल और गुड़ या चीनी से बनने वाली गजक कई प्रकार से बनती है। लड्डू, चिक्की और रेवड़ी भी बनती है। तिलपट्टी, तिल्ली के पापड़ व चिक्की में पिस्ता एवं अन्य ड्राईफ्रूट्स भी डालते हैं।
चवन्नीलाल हलवाई के ‘कचौड़े’:
Ajmer जिले का ही एक कस्बा है नसीराबाद। जायकेदार, मसालेदार, मजेदार और चटपटे स्वाद वाले कचौड़े न खाए, ऐसा हो ही नहीं सकता। नसीराबाद में यूं तो कचौड़े काफी जगह बिकते हैं, लेकिन सबसे मशहूर है चवन्नीलाल हलवाई के कचौड़े। लगभग चालीस दशक से चवन्नीलाल के कचौड़े लोगों द्वारा पसंद किए जा रहे हैं। यहां कचौड़े मुख्य रूप से दाल और आलू के बनते हैं। दाल के कचौड़े में उड़द की दाल, मैदा और तरह-तरह के मसाले मिलाए जाते हैं तथा आलू के कचौड़े में आलू, मैदा व मसाले होता है। एक कचौड़ा करीब 600 ग्राम का होता है। ये 170 रुपये किलो की दर से बिकते हैं।’ चवन्नी लाल के कचौड़े ऑनलाइन भी मंगवाए जा सकते हैं।
Ajmer की ‘कड़ी-कचौडी’
जिस तरह नसीराबाद का कचौड़ा फेमस है उसी प्रकार अजमेर की कड़ी-कचौड़ी भी मशहूर है। अजमेर शहर के बीच बजार में गोलप्याऊ के पास महादेव कचौड़ी वाले की दुकान पर सुबह से शाम तक कड़ी-कचौड़ी के शाकीनों का तांता लगा रहता है।