लद्दाख के उबड-खाबड़ इलाके में अनगिनत मठ आपको देखने को मिल जाएंगे क्योंकि यहां अधिकतर लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। ये मठ पर्यटकों को न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण अपनी और आकर्षित करते हैं बल्कि इनकी शानदार वास्तुकला भी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती है। पुरानी कलाकृतियां, भित्तिचित्र और इतिहास से जुड़ी दूसरी चीजें अनायास ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं। इन गोंपा (तिब्बती शैली में बने मठ) का शांत परिवेश आपको फिर से तरोताजा कर देगा। अगर आप सोच रहे हैं कि केवल एक मठ देखने से ही काम चल जाएगा क्योंकि सभी मठ एक जैसे होते हैं तो आपका सोचना गलत है क्योंकि प्रत्येक मठ में कुछ न कुछ अलग होता है। यहां हम आपको बता रहे हैं कि लद्दाख के अनगिनत मठों में कौनसे मठ हैं जहां आपको जरूर जाना चाहिए।
लामायुरु मठ
अगर आप श्रीनगर-लेह हाइवे से लद्दाख जा रहे हैं तो आपको यहां जरूर रुकना चाहिए। लामायुरु मठ, दरीकुंग कागयू स्कूल ऑफ बुद्धिज्म से जुड़ा है ये लद्दाख के सबसे पुराने और सबसे बड़े मठ में से एक है। इस मठ का इतिहास 11वीं सदी से शुरू होता है जब बौद्ध भिक्षु अरहत मध्यनतीका ने लामायुरु में मठ की नींव रखी थी, कहा जाता है कि इस जगह पहले एक झील हुआ करती थी। इसके बाद पास की गुफा से महिद्ध नरोपा यहां साधना करने आए और झील सूख गई, इसके बाद यहां लामायुरु मठ की स्थापना हुई।
मुलबेख मठ
श्रीनगर-लेह हाइवे से जाते हुए करगिल के बाद पहला स्टॉप मुलबेख मठ है। मठ बिल्कुल हाइवे के किनारे ही एक सीधी खड़ी चट्टान पर बना है जो सड़क से करीब 650 फीट ऊंची है। वास्तव में यहां दो मठ हैं पहला, दरुकपा या रेड हेट संप्रदाय और दूसरा, गेलुगपा या येलो हैट संप्रदाय से जुड़ा है।
मुलबेख मठ का प्रसिद्ध होने का प्रमुख कारण 30 फीट ऊंची मैत्रेय बुद्ध या भविष्य के बुद्ध की प्रतिमा है जिस चट्टान पर मठ बना हैं ये उसके ऊपर चूना पत्थर की चट्टान से बनी मूर्ति है। भविष्य के बुद्ध की मूर्ति हाइवे 1डी की ओर मुंह किए खड़ी है जो पुराने समय में व्यापार का मार्ग था। चट्टान के पास स्थित सूचना बोर्ड के मुताबिक इस मूर्ति का निर्माण पहली सदी में कुषाण काल के दौरान हुआ था। भविष्य के बुद्ध की मूर्ति को चंबा भी कहा जाता है इसी कारण इस मठ को प्राय मलबेख चंबा भी कहते है।
हेमिस मठ
हेमिस मठ को लद्दाख में सबसे बड़े बौद्धिक संस्थान के रुप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसका अस्तित्व 11वीं सदी से पहले से है। यह जगह प्रसिद्ध हेमिस त्योहार की जगह भी है जो हर साल जून में मनाया जाता है। तिब्बती शैली में बने इस मठ में प्रभावशाली भित्ती चित्र (दिवारों पर बने चित्र) और एक संग्रहालय है जिसमें बुद्ध की तांबे की मूर्ति, चांदी और सोने का स्तूप, थंगका पेंटिंग और कई कलाकृतियां हैं और अच्छा अनुभव पाने के लिए आप मठ के गेस्ट हाउस में रुक सकते हैं। यह मठ लेह से 45 किलोमीटर दूर है और सड़क के जरिए शहर से जुड़ा है।
थिकसे मठ
यह विशाल संरचना तिब्बत के पोटाला पैलेस के आधार पर बनाई गई है। इसे पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है जो करीब 12 मंजिल का है और लेह से करीब 19 किलोमीटर दूर है। यहां मैत्रेय की 49 फीट ऊंची मूर्ति लगी है जो लद्दाख में सबसे बड़ी है इसके अलावा बौद्ध अवशेष जैसे प्राचीन थंगका, टोपी, बड़ी तलवारें, पुराने स्तूप और भी बहुत कुछ यहां मौजूद है। यहां 100 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु और नन रहते हैं। इस संरचना में 10 मंदिर और एक असेंबली हॉल है। इसका बाहरी हिस्सा लाल, गेरुआ और सफेद रंग से रंगा है। यह एक लैंडमार्क बन गया है जो मीलो दूर से दिखाई देता है। सिंधु घाटी के बाढ़ के मैदानों का दृश्य देखने के लिए फोटोग्राफर्स के लिए एक सुविधाजनक जगह बन गई है।