वैदिक काल में मंत्रों द्वारा सूर्य देवता की पूजा की जाती थी। पिर राजाओं द्वारा इनके मंदिर का निर्माण शुरू हो गया। ओडिशा स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर देश के प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है।
सूर्य को वेदों में जगह की आत्मा कहा गया है। हिंदू धर्म के सभी प्राचीन ग्रंथों में इनकी महत्ता को बताया गया है। वैसे तो सूर्य प्रत्यक्ष देवता के रूप में सर्वसाधारण के सामने रहते हैं, इसलिए इन्हें ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत कहा गया है। फिर भी कुछ राजाओं ने सूर्यदेव के प्रति अपनी आस्था प्रदर्शित करने के लिए उपासना स्थलों का भी निर्माण करवाया। कोणार्क का सूर्य मंदिर भी उन्हीं में से एक है।
मंदिर का इतिहास
ओडिशा में पुरी जिले से लगभग 23 मील की दूरी पर चंद्रभागा नदी के तट पर कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है। इसकी कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। इसकी संरचना इस प्रकार है कि रथ में 12 जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे 7 शक्तिशाली घोड़े खींच रहे हैं। सूर्य का उदयकाल, मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से दिखाई देता है, ऐसा लगता है कि कोई लाल-नारंगी रंग का बड़ा सा गोला शिखर के चारों ओर अपनी किरणें बिखेर रहा है। यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में मशहूर है और ऊंचे प्रवेश द्वारों से घिरा है। इसका मूख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है और इसके तीन प्रधान हिस्से- देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही सीध में हैं। सबसे पहले नाटमंडप में प्रवेश द्वार है। इसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर स्थित हैं। यहां अलग-अलग मुद्राओं में हाथियों की सजीव आकृतियां मौजूद हैं। इसके अलावा कई देवी-देवताओं, गंधर्व, नाग, किन्नर और अप्सराओं के चित्र नक्काशी से तैयार किए गए हैं। मंदिर के गर्भगृह में सूर्यदेव की अलौकिक पुरुषाकृति मूर्तियां विराजमान हैं। इसका शिखर स्तूप कोणाकार है और तीन तलों में विभक्त है। इसका निर्माण गंग वंश के नरेश नरसिंह देव (प्रथम) ने करवाया था।
प्रचलित कथा
इस स्थान के पवित्र तीर्थ होने का उल्लेख कई संहिताओं और पुराणों में मिलता है। एक प्रचलित कथा के अनुसार, कृष्ण और जामवंती के पुत्र सांब अत्यंत सुंदर थे। स्त्रियों के साथ उन्हें आपत्तिजनक अवस्था में देखकर बिना कुछ सोचे श्रीकृष्ण ने उन्हें कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। सांब ने उनसे क्षमा मांगी तो भगवान ने अपने पुत्र को कोणार्क जाकर सूर्य की अराधना करने का आदेश दिया। अराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें चंद्रभागा नदी में स्नान करने को कहा। स्नान के दौरान उन्हें कमल पत्र पर सूर्य की मूर्ति दिखाई पड़ी। फिर उन्होंने ब्राह्मणों से उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। इस तरह उन्हें अपने पिता श्रीकृष्ण के शाप से मुक्ति मिल गई। पुराणों में इस सूर्य मूर्ति का उल्लेख कोणार्क अथवा कोणादित्य के नाम से किया गया है। ऐसी मान्यता है कि रथ सप्तमी के दिन चंद्रभागा नदी में सांब को वह मूर्ति मिली थी। इसलिए हर साल शुक्ल पक्ष सप्तमी को लोग वहां सूर्यदेव का पूजन करने आते हैं।
रोचक तथ्य
अद्भुत स्थापत्य कला की वजह से कोणार्के के सूर्य मंदिर को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया है। इसके प्रवेशद्वार पर शेरों द्वारा हाथियों के विनाश का दृश्य अंकित है। इसमें शेर अहंकार और हाथी धन का प्रतीक है। मंदिर के पहिए धूप-घड़ी का काम करते हैं। इनकी छाया से समय का अनुमान लगाया जाता है।
कब और कैसे जाएं
कोणार्क जाने के लिए सबसे सही समय नवंबर से मार्च के बीच होता है। यहां ज्यादा सर्दी नहीं पड़ती। देश के ज्यादातर जगहों से फ्लाइट द्वारा भुवनेश्र्वर तक पहुंचकर वहां से बस और ट्रेन द्वारा आसानी से कोणार्क पहुंचा जा सकता है। हैंडलूम के कपड़े और हस्तशिल्प से बनी सजावटी वस्तुएं यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। समुद्र तट के आसपास बिकने वाले सीपियों से बने सुंदर आभूषण लोगों को बहुत आकर्षित करते हैं। सुरम्य प्राकृतिक वातावरण में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के आसपास जगन्नाथपुरी मंदिर, चिल्का झील, भीतरकानिका नेशनल पार्क, उदयगिरी की गुफाएं और महेंद्रगिरी पर्वत जैसे कई ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं। तो फिर देर किस बात की, आइए चलें ओडिशा की सैर करने।